माँ बाप पर कविता – मां बाप के ही रूप में
आप पढ़ रहे हैं माँ बाप पर कविता - माँ बाप पर कविता लोक जन कल्याण हेतुलिख रहे जो काव्य हैं,पीढ़ियों को सीख देकरदे रहे जो ताप है, रह गया वंचित अगर जोआज के इस बात सेउसके लिए…
आप पढ़ रहे हैं माँ बाप पर कविता - माँ बाप पर कविता लोक जन कल्याण हेतुलिख रहे जो काव्य हैं,पीढ़ियों को सीख देकरदे रहे जो ताप है, रह गया वंचित अगर जोआज के इस बात सेउसके लिए…
आप पढ़ रहे हैं परिवार पर हिंदी कविता परिवार पर हिंदी कविता अरुणोदय की आभा का विस्तार बचा लो हे भगवन।भारत मां के आंगन के परिवार बचा लो हे भगवन।। परिवार वही जो अपनेपन के भावों से हो भरा हुआ,रिश्तों का संसार जहां हो प्रेम सिंधु से घिरा हुआ,प्रेम सिंधु…
आप पढ़ रहे हैं गिलहरी पर कविता :- गिलहरी पर कविता एक गिलहरी मेरे पोस्ट के चारों ओर भटकती है,रुक-रुक कर वो बड़े प्यार से मेरी ओर घूरती है।मुझे लगा कि वह बेचारी मॉर्निंग वाक पर आई है,लेकिन वह भूख मिटाने के खातिर दाना लेने आई है।। उम्मीद भरी निगाहों…
आप पढ़ रहे हैं कलम पर हिंदी कविता - मेरी कलम कलम पर हिंदी कविता मेरी कलम…….ना कभी थकती है,ना कभी रुकती है!बस अपने लक्ष्य के प्रति बढ़ती है।मोह-माया से गुजर कर,एक नई कविता लिखती है। कुछ सुलझे और कुछ असुलझे,हर कुछ न कुछ लाती है।शब्दों की यह महारानी है,कुछ…
आप पढ़ रहे हैं कविता सुकून की तलाश और मन पर कविता :- कविता सुकून की तलाश कभी भीड़, कभी एकांत, कभी आवाराबनकर घूमती हूँ में l यकीन मानों अब ख्वाबों में भी तो सुकून नहींअब हर रोज रात में सितारों से झगड़ती हूँ में l फुर्सत के पल तलाशती…
आप पढ़ रहे हैं " माँ को समर्पित कविता " :- माँ को समर्पित कविता हे! मां आकर मुझे बताओयह मुझे समझ ना आए क्यों?सब क्यों उलझा उलझा लगतायह कोई ना समझाए क्यों? पूछो पूछो पुत्र सयानेहै खीझा खीझा उलझा क्यों?कौन प्रश्न हैं इतना भारीजो नहीं अभी तक सुलझा क्यों?…
आप पढ़ रहे हैं " आदमी पर हिंदी कविता " :- आदमी पर हिंदी कविता आदमी है जो सबको हॅंसाता रहेखुद भी हॅंसता रहे मुस्कराता रहे। दूर कर दे हर दुखड़े हॅंसी प्यार सेजीत ले सारी मुश्किल सदाचार से लाख बाधाएं आए उसे भूल कर आगे बढ़ते कदम को बढ़ाता रहे, आदमी…
आप पढ़ रहे हैं हिंदी कविता जिंदगी की किताब :- हिंदी कविता जिंदगी की किताब एक दिन पढ़ने लगाजिंदगी की किताब, पलटने लगा पल पल के पन्नों कोऔर समझने लगा बीती दास्तां। खोता गया अतीत के शाब्दिक भाव में,मन में उभरने लगा अक्षरता एक चित्र। लोग इकट्ठा थे बोल रहे…
आप पढ़ रहे हैं " कविता प्रमुदित थे संगीत में " :- कविता प्रमुदित थे संगीत में शून्य गगन,शशि नूतनहाथों में रजत धार लियेसुमधुर ध्वनि,नूपुर संगअक्ष पर अविरत नृत्य करते **!! असंख्य ग्रह और अनंत तारेपग बढ़ाते,चढ़े क्षितिज सेशब्द रहित,प्रेम की भाषा मेंप्रमुदित हो,संगीत बहाते**!! शुभ्र श्रृंगार कर,शशि किरणेंघोल रहीं…
आप पढ़ रहे हैं " कविता भारत की धरा " :- कविता भारत की धरा अश्रु था,नीर नहींअभिशाप का अंगार थाप्रलय की ज्वाला मेंथी भारत की,अमर धरा… आंधी थी,चारों दिशाएँपड़ गई थी वो बंधन मेंराहें भी अंधेरी सी थींपर था,अगाध संकल्प भरा…. निरंतर आविर्भूत होआक्रमण की शोध क्या,परिणाम क्याबस हुआ…
आप पढ़ रहे हैं " कर्मों पर कविता " :- कर्मों पर कविता कर्मों से भैया - बंधु मिलेंकर्मों से मिलती है नारी कर्मों से पूत - कपूत मिलेंकर्मों से बाप और महतारी कर्मों से स्वर्ग - नरक मिलतेकर्मों की हैं बातें सारी कर्मों से सुख - दुख मिलते हैंकर्मों से है दुनिया सारी योग - वियोग होहिं कर्मों सेकर्मों से प्रेम और फौजदारी गुलाम बनें हम कर्मों सेकर्मों की है जी सरदारी सम्मान भी मिलता कर्मों सेकर्मों से होती है ख्वारी "जग्गा" सब फल है कर्मों काकर्मों की है महिमा न्यारी पढ़िए :- कर्म पर हिंदी कविता | कर्मयुद्ध के भीषण रण में रचनाकार का परिचय यह कविता हमें भेजी है जगवीर सिंह चौधरी…
आप पढ़ रहे हैं "हिंदी कविता ममतामयी माँ " :- हिंदी कविता ममतामयी माँ (तर्ज: जिसकी प्रतिमा इतनी…..) ममतामयी माँ शरण में आयाअपनी दया दिखा देनामेरे सिर पर हाथ धरो माँज्ञान की ज्योति जगा देनाज्ञान की ज्योति जगा देना…..2 तु बिगडे़ सबके काज संवारेरोम रोम आभास तेराश्रद्धा की आवाज तुझी…