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फैशन पर कविता
वाह वाह क्या है? फैशन का मेला।
गुरु गुड़ रह गया, शक्कर बन गया चेला।
फैशन है बाजार का, नया पैंतरा व झांसा।
किसी को भी इसने,नही छोड़ा सबको फांसा।
बिगड़ी का नाम है फैशन।
यह पैदा करती है टेंशन।
फैशन के नाम पर, खूब-फूंकते है पैसा।
काला कभी गोरा नहीं होता, रहता है वैसा का वैसा।
फैशन की दुनिया है, बहुत विशाल।
बेकार की चीज को भी, बना देते है बेमिसाल।
नई पीढ़ी को इसका,लगा है बहुत चस्का।
बुजुर्गो को समझाते है,लगा-लगा के मस्का।
पर एक दिन सबको समझना पड़ेगा,फैशन बाजार को।
क्यों लुटा रहे है हम, मेहनत की गाढ़ी कमाई को।
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