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Gantantra Diwas Par Kavita
गणतंत्र दिवस पर कविता

Gantantra Diwas Par Kavita

कितनी पीड़ा सही उन्होंने,
तिरंगे की शान बचाने को।
खदेड़ फिरंगियों को भारत से,
अपनी आजादी पाने को।

कुछ ने सीने पर गोली झेली,
तो कुछ फंदों पर झूल गए।
लाशों के अनगिन ढेर जले थे,
यहाँ संविधान बनाने को।

बाईबिल,गीता,कुरान ने हमको,
यदि जीवन का था मंत्र दिया।
तो संविधान की इस पुस्तक ने,
ही हम सबको गणतंत्र दिया।

छब्बीस जनवरी का दिन कैसे,
इतिहासों में यूँ दर्ज हुवा।
वीर शहीदों की पावन माटी का,
हम पर अचूक कर्ज हुवा।

ऐसी पुस्तक जिसने हमको,
खुलकर जीने का अधिकार दिया।
इस संविधान की रक्षा करना भी,
हम सबका ही तो फर्ज हुवा।

भ्रष्टाचार, परिवारवाद की,
नीतियों ने यदि षड्यंत्र दिया।
तो संविधान की इस पुस्तक ने,
ही हम सबको गणतंत्र दिया।

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रचनाकार का परिचय

हरीश चमोली

मेरा नाम हरीश चमोली है और मैं उत्तराखंड के टेहरी गढ़वाल जिले का रहें वाला एक छोटा सा कवि ह्रदयी व्यक्ति हूँ। बचपन से ही मुझे लिखने का शौक है और मैं अपनी सकारात्मक सोच से देश, समाज और हिंदी के लिए कुछ करना चाहता हूँ। जीवन के किसी पड़ाव पर कभी किसी मंच पर बोलने का मौका मिले तो ये मेरे लिए सौभाग्य की बात होगी।

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