आप पढ़ रहे हैं गिलहरी पर कविता :-
गिलहरी पर कविता
एक गिलहरी मेरे पोस्ट के चारों ओर भटकती है,
रुक-रुक कर वो बड़े प्यार से मेरी ओर घूरती है।
मुझे लगा कि वह बेचारी मॉर्निंग वाक पर आई है,
लेकिन वह भूख मिटाने के खातिर दाना लेने आई है।।
उम्मीद भरी निगाहों से मुझको नजरों से ताड़ा ,
चारों ओर रही भटकती मिला उसे ना एक दाना।
तब मैंने नाश्ते की रोटी का टुकडा उसको डाला ,
बड़े प्यार से मुझको देख उसने थैंक्यू कह डाला।।
उठा नेवाला रोटी का वह ,आगे के पैरो पर रखकर,
चमकदार, उत्सुक आंखों से चारों ओर देख_देख कर।
अपने नन्हें दांतो से वह खाने लगी कुतर कुतर कर ,
पेट भरा मेरे दोस्त का लगी नाचने उछल उछल कर।।
पढ़िए :- शिक्षक पर हास्य कविता – गुरु की इज़्ज़त
रचनाकार का परिचय
यह कविता हमें भेजी है रवींद्र कुमार जी (सशस्त्र सीमा बाल ) ने लखीमपुर, उत्तर प्रदेश से।
“ गिलहरी पर कविता ” ( Gilahri Par Kavita ) आपको कैसी लगी ? “ गिलहरी पर कविता ” ( Gilahri Par Kavita ) के बारे में कृपया अपने विचार कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें। जिससे लेखक का हौसला और सम्मान बढ़ाया जा सके और हमें उनकी और रचनाएँ पढ़ने का मौका मिले।
यदि आप भी रखते हैं लिखने का हुनर और चाहते हैं कि आपकी रचनाएँ हमारे ब्लॉग के जरिये लोगों तक पहुंचे तो लिख भेजिए अपनी रचनाएँ hindipyala@gmail.com पर या फिर हमारे व्हाट्सएप्प नंबर 9115672434 पर।
हम करेंगे आपकी प्रतिभाओं का सम्मान और देंगे आपको एक नया मंच।
- हमारा फेसबुक पेज लाइक करने के लिए यहाँ क्लिक करें।
- हमारा यूट्यूब चैनल सब्सक्राइब करने के लिए यहाँ क्लिक करें।
धन्यवाद।
Bhut khoob …..
Ek ehsas chhupa hai apki kavita me .