आप पढ़ रहे हैं ( Gullak Par Kavita ) गुल्लक पर कविता :-
गुल्लक पर कविता
बचत करना है जरूरी,
बच्चों की डालो आदत।
जेब खर्च से सीखे बचाना,
फिजूलखर्ची की मत दो इजाजत।
बचपन में पड़ी अच्छी आदत,
कभी भी नहीं भुली जाती।
मितव्ययी बने सब,
बच्चे हो या नाती।
रोज की बचत को,
गुल्लक में रखो जमाकर।
बुरे वक्त में काम देगी ऐसी,
जैसे रखी हो कमाकर।
मितव्ययी और कंजूसी का,
फर्क समझो और समझाओ।
जीवन में स्वयं भी मानो,
और संतति को भी मनवाओ।
शान शौकत की दुनिया में,
आमदनी से ज्यादा हो रहा है खर्चा।
इसलिए परिवार, समाज में,
इस पर जमकर होनी चाहिए चर्चा।
पैसा अगर पास है तो,
वर्तमान व भविष्य सुधरेगा।
जीवन खुशहाल होगा,
बुढ़ापा अच्छे से गुजरेगा।
पढ़िए :- कर्म पर हिंदी कविता | कर्मयुद्ध के भीषण रण में
“रचनाकार का परिचय
“ गुल्लक पर कविता ” ( Gullak Par Kavita ) के बारे में कृपया अपने विचार कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें। जिससे लेखक का हौसला और सम्मान बढ़ाया जा सके और हमें उनकी और रचनाएँ पढ़ने का मौका मिले।
यदि आप भी रखते हैं लिखने का हुनर और चाहते हैं कि आपकी रचनाएँ हमारे ब्लॉग के जरिये लोगों तक पहुंचे तो लिख भेजिए अपनी रचनाएँ hindipyala@gmail.com पर या फिर हमारे व्हाट्सएप्प नंबर 9115672434 पर।
हम करेंगे आपकी प्रतिभाओं का सम्मान और देंगे आपको एक नया मंच।
धन्यवाद।
Leave a Reply