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हिंदी कविता – हताशा
है हताशा है निराशा
जीवन मेरा अभिशाप है,
पाप पुण्य में फंसा
जीवन ही तो पाप है।
कर्म धर्म की धरा
ये मायावी वसुंधरा,
अखंड काल का कराल
वैभव विशाल है भरा।
भय नहीं है मौत से
क्षय हुआ मैं शोक से,
दया धर्म दान दक्ष
छीन लिया मुझसे।
क्या पता तुझे
जीवन मेरा एक रोग है,
न वैद्य है न औषधि
ये कैसा विश्वयोग है।
भाग्य मेरा भाग्य नहीं
शक्ति रूप छल सही,
खंड-खंड में रहा
प्रलय रात्रि नाच रही।
है हताशा है निराशा
जीवन मेरा अभिशाप है।
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यह रचना हमें भेजी है दीपक भारती जी ने कोरारी गिरधर शाह पूरे महादेवन का पुरवा, अमेठी से।
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