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हिंदी कविता ख़्वाबों का आशियाना
बेवजह होश में हम आने चले थे,
जो दूर दूर तक नहीं थे अपने उन्हें अपना बनाने चले थे।
मदहोश निगाहों में ख़्वाबों का आशियाना बनाने चले थे,
हवाएं बार बार मेरे मन को छू जाती थी
भीनी भीनी खुशबुओं के संग हवाएं
मेरे आंचल में समा जाती थी।
मैं चुपचाप देखती ये आवाथापी
कुछ कही कुछ अनकही बातों में मैं खोई रह जाती थी।
बड़ा दिलनशी मंजर था जब
वो मेरे कान में कुछ कह जाती थी।
मैं अनजान फरेबी वक्त की चालाकियों से
होंठो में मुस्कान संग सिमट जाती थी।
अचानक सर्द हवाओं ने मुझे झकझोरा,
ख्वाबों के पुलिंदे में लिपटी मै दूर बड़ी दूर नजर आती थी।
दास्तां में खोई मेरी तनहाई,
मेरा साया बनकर मेरे साथ साथ नजर आती थी ।
रचनाकार कर परिचय :-
नाम – अवस्थी कल्पना
पता – इंद्रलोक हाइड्रिल कॉलोनी , कृष्णा नगर , लखनऊ
शिक्षा – एम. ए . बीएड . एम. एड
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Nice poetry
Nice