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हिंदी कविता मृगमरिचिका

हिंदी कविता मृगमरिचिका

मृगमरिचिका जीवन सारा
तृष्णा में डूबा जाता है।
तृष्णाग्रस्त हो खोया रहता ,
हाथ नहीं कुछ आता है।

मरुभूमि में उज्जवल जल सा…
बार-बार बहकाता है।
कस्तूरी सा दिशाविहीन मन,
भटका- भटका जाता है।

रेत ,खार की परतों पर
सूर्य, चंद्र जब प्रकाश बरसाता है।
लगता जैसे भरा जलाशय,
पास जाओ तो अदृश्य हो जाता है।

दीपक तले पतंगा फिर -फिर…
आकर्षित हो जाता है।
अपने पंख जलाकर..
औंधे मुंह धरती पर आता है।

चांद से मिलने खोई चकोरी..
प्यासी उड़ -उड़ जाती है,
खाती है अंगार मोह में,
अपनी चोंच जलाती है।

इटली के मैसीना जल से,
आकाश में दृश्य बनते हैं।
घर, महल हवा में दिखते
जादुई तिलस्मी लगते है।

जापानी तोयामा खाड़ी,
आकाश में दृश्य बनाती है।
बार-बार लोगों के मन में
डर और भ्रम फैलाती है।

सत्यता को जांचे बिना जब..
तृष्णा में हम मरते हैं।
जान नहीं पाते सच्चाई,
भूगर्भ की उथल-पुथल से
कोहरे और गैस से
हवाओं में दृश्य बनते हैं।

ऐसा ही ये जीवन सारा
भटका -भटका जाता है।
परमपिता में लीन हुए जो
उन्हें कोई न भटका पाता है।

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रचनाकार का परिचय

निमिषा सिंघल

नाम : निमिषा सिंघल
शिक्षा : एमएससी, बी.एड,एम.फिल, प्रवीण (शास्त्रीय संगीत)
निवास: 46, लाजपत कुंज-1, आगरा

निमिषा जी का एक कविता संग्रह, व अनेक सांझा काव्य संग्रहों में रचनाएं प्रकाशित हैं। इसके साथ ही अनेक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं की वेबसाइट पर कविताएं प्रकाशित होती रहती हैं।

उनकी रचनाओं के लिए उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित भी किया गया है जिनमे अमृता प्रीतम स्मृति कवयित्री सम्मान, बागेश्वरी साहित्य सम्मान, सुमित्रानंदन पंत स्मृति सम्मान सहित कई अन्य पुरुस्कार भी हैं।

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