प्रेम कलश ( चतुर्थ सर्ग )
” नायक शिव और नायिका शिवा में वियोग एवम उनका बिरह चित्रण “
प्राक्कथन— बन्धुओं ! जीवन में संयोग और वियोग अकाट्य सत्य है । इसी क्रम में शिव और शिवा जीवन में भी संयोग के उपरान्त वियोग का मर्माहत एवं मर्मस्पर्शी क्षण आ पहुँचा है । बिछुड़न के समय उन दोनों की मनःस्थिति क्या है , प्रकृति ऐसे क्षण में किस प्रकार उनके वियोग में भागीदारी निभा रही है , इन्हीं भावनाओं का चित्रण किया गया है ।
एक बार चलो फिर से मिल लें ,
अब दूर हमें जाना है ।
ना जाने की चाहत मेरी ,
पर ना कोई बहाना है– 1
क्या करूँ नहीं बस चलता मेरा ,
मैं रीति रश्म से बेबश हूँ ।
जाना तो मुझको होगा ही ,
फिर भी तेरा सर्वश हूँ– 2
सन्देश मिला जाने का तो ,
आँखें मेरी भर आईं ।
विचलित शरीर के रग रग में ,
विरह वेदना छाई– 3
दुःख भरा निवेदन शिव मानो ,
सारी बात अतीत हुई ।
बिरह दंश के चिन्तन में ,
सारी रात व्यतीत हुई–4
जब दूर चली जाओगी शिवा ,
तुम याद बहुत आओगी ।
सूना सूना सा दिन होगा ,
रजनी में हमें रुलाओगी–5
तन से दूर भले जाऊँ पर ,
मन तेरे साथ रहेगा ।
पल पल चिन्तन तेरा होगा ,
तन आस लिये तड़पेगा–6
वहाँ पहुँच कर मन मन्दिर में ,
शिव प्रतिमा एक बना लूँगी ।
प्राण प्रतिष्ठा पीछे होगी ,
पहले भव्य सजा लूँगी–7
आँखें हैं भरी हुई मेरी ,
और दैन्य भाव के चलते ।
अवरुद्ध कण्ठ से शब्द मेरे ,
आनन से नहीं निकलते–8
भाव सुमन चुन चुन करके ,
उसका श्रृंगार रचाऊँगी ।
बहते आँसू की धारा से ,
उसको स्नान कराऊँगी–9
वस्त्र पहनाकर प्रेम भाव के ,
प्राण प्रतिष्ठा कर दूँगी ।
नयन ज्योति की प्रेम प्रभा से ,
मन्दिर जगमग कर दूँगी–10
बात चली लम्बी दोनों की ,
पल जाने का हो आया ।
बढ़ी वेदना प्रेमी द्वय की ,
नभ मण्डल थर्राया–11
उस स्थल के जीव चराचर ,
आवाज सुने दौड़े आये ।
स्तब्ध शरीर सभी का था ,
आँखों में आँसू छाये–12
बिपरीत दिशाओं में दोनों ही ,
अपने कदम बढ़ाते थे ।
देख रहे थे आपस में मुड़कर ,
बिरह अश्रु बरसाते थे–13
वह प्रेम दृश्य या बिरह दृश्य था ,
या रजनी के सम था ।
समझ नहीं कोई भी पाया ,
कैसा यह प्रेम समागम था–14
हो चला गगन काला – काला ,
घनघोर घटा घिर आई ।
प्रेमी द्वय की पीड़ा मानों ,
उर मेंघन के छाई–15
घुमड़- घुमड़ कर रोष दिखाते ,
रह रह गर्जन करते ।
ना जाओ तुम ना जाओ ,
मानों यह रह रह कहते–16
क्रोध बिनय करते करते ,
उनको असफलता ज्ञात हुई ।
जाना उनकी मजबूरी है ,
यह बात हृदय में ज्ञात हुई–17
मानी हार बादलों ने भी ,
तब बूँदा बाँदी शुरूँ हुई ।
टपक रहे थे बूँद धरा पर ,
नवल कहानी शुरूँ हुई–18
रह रह झोंके तीब्र पवन के ,
उनके बदन को छूते ।
चले जा रहे दोनों प्रेमी ,
नयी कहानी कहते–19
आशीर्वाद स्वरूप एकाएक ,
बारिश भी अब तेज हुई ।
शिव और शिवा के लिए कँटीली ,
डगर प्रेम की सेज हुई–20
नयी कहानी विरह भाव की ,
आज यहीं शुरुआत हुई ।
नील निलय के सुमन कोश से ,
सुमनों की बरसात हुई–21
शिवा चली मोहनी नगर ,
शिव अपलक उसे निहार रहा ।
हारे और थकी वाणी से ,
शिवा शिवा चीत्कार रहा–22
चली जा रही घायल वियोगिनी ,
तन भी नहीं सँभलता था ।
अस्त व्यस्त थे वसन शिवा के ,
मानों पुतला सा चलता था–23
पैर जमाये खड़ा हुआ था ,
ठगा- ठगा सा लगता था ।
बना हुआ पाषाण मूर्ति सा ,
मुरझाया सा लगता था–24
वह लगा सोचने मन में ,
मैंने क्या खोया क्या पाया ।
मुझको जो था प्राप्त प्रकृति से ,
आज सभी हूँ गँवाया–25
हे दाता मुझको बतलाओ ,
कैसे हम जी पायेंगे ।
शिवा नहीं तो दिवा नहीं ,
रजनी में हम घबरायेंगे–26
सूर्य हुआ अस्ताचलगामी ,
रात अँधेरी आई ।
घनघोर वेदना शिव में थी ,
आँखें भी थी पथराई–27
अत्यंत सुन्दर एवं मनमोहक रचना
बहुत ही सुंदर रचना। वियोग शृंगार का अच्छा वर्णन, प्रकृति वर्णन वर्णन भी अच्छा है। नायिका के विरह को और दर्शाया जा सकता था। नायक-नायिका के बिछड़ने का कारण स्पष्ट नहीं है। छंदों में कसावट नहीं है, लयबद्धता की कमी है, पढ़ने में खटकते हैं। कहीं- कहीं व्याकरणात्मक त्रुटियां हैं। भावों के दृष्टिकोण से अच्छी रचना।
Adarnya jitendra ji ! Apne reaction diya ki rachna sundar h , bhav achchhe hain , viyog aur sanyog ka varnan bhi bhut khoobsoorat dhhang se kiya gya h .
Fir ye kahna ki kasavat nhi chhadon me , laybadhata nhi h , avashyak aur uchit nhi lgta , kyuki har vyakti apne andaj me read krta h . Mujhe aisa kuchh nhi lgta . Reaction savdhani poorvak diya jana chahiye , kuki rachnakar apni poori chhamta se rachana krta h , rachnakar ke mnobal ko shayad aghat pahuche aise reaction se . Aise reacion se bcha jana chahiye .
Thank u.