हिंदी कविता श्रृंगार
“ना बाल बनाई , मैं काजल लगाई
ना लाली लगाई , ना बिंदिया लगाई
फिर भी झलकती है, तुझ में चांदनी
क्योंकि तुझ में है ख्वाहिशों की रोशनी “
“दर्पण भी है तेरे आगे फीका
क्योंकि तूने पहन रखा है
आशाओं का जोगा”
“यह काजल, यह बिंदिया, यह लाली
क्या सवारी की तुझे
तूने तो परिभाषित किया है
अपने स्पर्श से इन्हें”
“कहते हैं काजल है आंखों का स्वरूप
पर इनको क्या पता तेरे बिना
नहीं है इनका कोई वजूद “
“बिंदी से झलकता है
माथे का सुनहरा रूप
पर तेरे साथ के बिना तो जैसे
बिना दाग के चांद का रूप”
“लाली जैसे रंगो का प्रतीक
दिखे जैसे फूलों पर भंवरों की भीड़
पर तेरे बिना तो है जैसे
बिना रंगों के रंगोली का प्रतीक”
“ऐसे तो है तेरी अहमियत
सबसे खास जिंदगानी में मेरे
असली सिंगार तो है मेरी
अंतर आत्मा के
ख्वाइशों का प्रतीक”
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रचनाकार का परिचय
मेरा नाम रामेंद्र ओझा है मैं मध्यप्रदेश के भिंड जिले का रहने वाला एक छोटा सा कवि हृदय व्यक्ति हूं। मुझे बचपन से ही गाना नहीं उसके बोल में रुचि थी मैं यही सोचता रहता था कि गाने के बोल कौन लिखता होगा। बाद में पता चला कि इनके पीछे एक लेखक या कवि का हाथ ही रहता है बस सब से ही मुझ में लिखने की रुचि पैदा हो गई। जीवन के किसी पड़ाव पर कभी किसी मंच पर बोलने का मौका मिले तो यह मेरे लिए सौभाग्य की बात होगी।
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