हिंदी कविता स्त्री मन
हिंदी कविता स्त्री मन
स्त्री मन को यह जमाना नहीं समझ पाया,
जब जब जमाने ने स्त्री को ठुकराया।
तब स्त्री ने पुरुषों को भी मात देकर बताया,
स्त्री तेरे मन को यह जमाना नहीं समझ पाया।
तू कटती, जलती रही परिवार को भोजन खिलाने के लिए,
तू मरती मिटती रही खुद का सम्मान बचाने के लिए।
जब बात आई परिवार की तो
रानी लक्ष्मीबाई बनकर सामने आई,
जब बात आएगी सुरक्षा की तब
तूने दुर्गा मां बनकर पूरी सृष्टि बचाई।
स्त्री तुझे हर बा
जमाने ने तिरस्कार दिया,
पर तूने नहीं किया भेदभाव
तूने जमाने को हर बार प्यार दिया।
स्त्री तेरे मन को
यह जमाना नहीं समझ पाया,
परिवार की खुशहाली के लिए
तूने अपने सपनों को दफनाया।
कि परिवार की मान और मर्यादा के लिए
तूने अपनी खुशियों को ठुकराया,
तेरी वजह से ही दुनिया में पुरूष आ पाया
फिर भी पुरुष ने तेरा तिरस्कार किया।
कभी मां बनकर कभी बहन बनकरतो कभी बेटी बनकर
तूने हर बार जमाने को प्यार दिया,
फिर भी लोगों ने क्यों तेरा तिरस्कार किया
ऐ स्त्री तेरे मन को यह जमाना सच में नहीं समझ पाया।
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रचनाकार का परिचय
यह कविता हमें भेजी है हरि ओम पटेल, ने रायगढ़, छत्तीसगढ़ से।
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