Holika Dahan Par Kavita – प्रस्तुत है रामबृक्ष कुमार जी द्वारा रचित होलिका दहन पर कविता :-
Holika Dahan Par Kavita
होलिका दहन पर कविता
आज दहन की रात
चांद से सुंदर मुखड़े का
उठेगी जन ज्वाला अंगार
जलेगी एक नारी सम्मान
उठेगी गंगा में ज्वार आज
होगी हुल्लड़ो की सौगात।
आज दहन की रात
वह भी किसी की बहना थी
बेटी थी मां की गहना थी
प्रहलाद संग ली अग्नि समाधि
जो होना था वह हुआ नहीं
या घातो से हो गयी अघात।
होगी आज दहन की रात।
हर साल मनाते क्यूं होली
क्या जली होलिका न भूली
या हो रही तैयारी अब जलने की
हर दिन बेटी बहना कल की
फिर दहक उठेगी खाक।
आज दहन की रात।
इक नारी हो गयी खाक
ओ भी अचानक रातो रात
हाथ रस में हो गयी बड़ी बात
था समय वही थी वही रात
सह गयी होलिका सी उत्पात।
आज दहन की रात।
अपमान कलंक का कीचड़ ही
लोगों पर फेंका जाता क्या?
दारू गांजा भांग धतूरा
त्योहार यही सिखलाता क्या?
छोड़ बुराई करें भलाई
मिल करके एक साथ।
आज दहन की रात।
हरियाली का रंग सुनहरा
चना मटर गेहूं जौ बाजरा
कहते फसलें खुद लहराकर
हो ली हम तैयार,
यही होली त्योहार,
आज जश्न की रात।
कैस दहन की रात !
होली में रंग मिल जाते ज्यों
मिल जाते मन खिल जाते त्यों
हाथों की अंगुली सी बाली
आधी रात जलाते हो क्यों
मिली खुशी से हुई जलन क्यों।
यह कैसा प्रतिघात!
आज दहन की रात।
पढ़िए :- होली पर कविता ” रंगों के इस मौसम में “
रचनाकार का परिचय
यह कविता हमें भेजी है रामबृक्ष कुमार जी ने अम्बेडकर नगर से।
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