आप पढ़ रहे हैं ( Kavita Dukh Ki Badli ) कविता दु:ख की बदली :-

कविता दु:ख की बदली

कविता दु:ख की बदली

रात भयानक थी काली
न निशाकर की कर की जाली
सांय सांय सन्नाटा की ध्वनि
फैली तरु की डाली डाली

निशीथ सघन काले धन की
मन पर छाई दु:ख की बदली
व्याकुल तन विकृत मन
सोंचा खुशियों का अब हुआ अंत

क्या जीवन यह अंतिम पहली
मन पर छाई दु:ख की बदली
नि:शब्द ध्वनि अंत:मन की
कंटक कष्ट तो है पथ की

सुख दु:ख जीवन के दो पहलू
दु:ख को पहले क्यों ना सहलू
धर,धैर्य समय का फेरा है
ग्रहण सूरज को घेरा है

फिर होगा अरुणामय अहन्
छट जाएगा यह मेघ गहन
मिट जाएगी व्यथा मन की
मन पर छाई दु:ख की बदली

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रचनाकार का परिचय

रामबृक्ष कुमार

यह कविता हमें भेजी है रामबृक्ष कुमार जी ने आंबेडकर नगर से।

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धन्यवाद।

This Post Has One Comment

  1. Avatar
    Rambriksh

    Very good poem

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