आप पढ़ रहे हैं “कविता माँ की जय जयकार “:-
कविता माँ की जय जयकार
बिठा के अपने मन मंदिर में
माँ की जय जयकार करो !
फूल मिलें चाहे मिले हो कांटे
सबको हंसके स्वीकार करो !!
सारी दुनिया को छोड़ कर
हम शरण तुम्हारी आए हैं !
जिसमें हो हम सबका भला
वह अब मेरे करतार करो !!
बिठा के अपने मन मंदिर में
माँ की जय जयकार करो !
तुम बिन उजड़ न जाए कहीं
देखों मेरे जीवन की बगिया !
देके अपनी भक्ति की शक्ति
जीवन मेरा गुलजार करो !!
बिठा के अपने मन मंदिर में
माँ की जय जयकार करो !
यहां पर जिंदगी छोटी है
और सफर बहुत ही लंबा है !
मझधार में अटकी है नैया
माँ मेरा बेड़ा पार करो !!
बिठा के अपने मन मंदिर में
माँ की जय जयकार करो !
तन मन से करते हैं हम
रात ओर दिन भक्ति तुम्हारी !
कभी हमारी भी सुध लेकर
हम पर भी उपकार करो !!
बिठा के अपने मन मंदिर में
माँ की जय जयकार करो !
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