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कविता पिता के लिए
कभी धरती और आसमान है पिता,
मेरा अभिमान व स्वाभिमान है पिता,,
बेशक जन्म दिया है मां ने पर,
मेरी परवरिश का आधा ज्ञान है पिता,
जो बचपन में मनमानी की थी मैने,
हर उस जिज्ञासा की भरमार है पिता,
भले मै घर से बाहर ही क्यों ना रहूं,
हर जगह छत घर बार है पिता,
कभी देखा नहीं उनको नम आंखों में,
शायद अंधेरी रातो में रोता है पिता,
हा कभी काम क्रोध भरा होता है,
अपने लिए नहीं, अपनों के लिए जीता है पिता।
बेशक घर बाहर नज़रे रहती है उसकी,
कभी अर्जुन, कृष्णन तो कभी राम है पिता।
पढ़िए :- पिता के लिए हिंदी कविता | Pita Ke Liye Hindi Kavita
रचनाकार का परिचय
यह कविता हमें भेजी है नटवर चरपोटा जी ने नई आबादी गामड़ी, प. स. तलवाड़, ज़िला बांसवाड़ा, राजस्थान से।
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