आप पढ़ रहे हैं कविता सुकून की तलाश और मन पर कविता :–
कविता सुकून की तलाश
कभी भीड़, कभी एकांत, कभी आवारा
बनकर घूमती हूँ में l
यकीन मानों अब ख्वाबों में भी तो सुकून नहीं
अब हर रोज रात में सितारों से झगड़ती हूँ में l
फुर्सत के पल तलाशती हूँ में
हर शख्स अब तुझ सा लगता है न जाने क्यों??
उजालों में भी अब डर लगता है न जाने क्यों??
आंखों में नींद लिए फिरती हूँ में
फिर भी सुकून नहीं न जाने क्यों??
ये मेरी उम्र का तकाजा है,या तेरे इश्क का असर
भीड़ में भी इतनी तनहा हो जाती हूँ में न जाने क्यों??
पढ़िए :- हिंदी कविता जीवन का सफर
मन पर कविता
ये मन बड़ा चंचल है!
ये मन बस चलता रहता है!
हर समय सोचता – बिचारता है!
कभी अच्छा तो, कभी बुरा!
कभी उम्मीदों का ढेर इकट्ठा करता है!
तो कभी भय का तूफान!
कभी बिचलित हो जाता है!
तो कभी विचार पैदा करता है!
कभी जीत का विश्वास देता है!
तो कभी हार की आशंका!
ये मन भटकता खुद है!
लेकिन उलझन में मुझे डाल देता है!
ये मन मुझे नचाता रहता है!
कभी प्यार में, कभी नफ़रत में!
कभी हार में, कभी जीत में!
कभी यहाँ, कभी वहाँ!!
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रचनाकार का परिचय
यह कविता हमें भेजी है ललिता डोभाल (प्रज्ञा ) जी ने बड़कोट, उत्तरकाशी (उत्तराखंड ) से।
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