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कविता उसने मेरा नाम पूछा
पड़ोस के मकान में रहने के लिए,
एक विदूषक व्यक्ति आया था!
याद है शायद उसने मुझे ,
अपना नाम नरेश शर्मा बताया था!!
जो जरूरी था वो हमसे पूछना भूल गए!
हम भी अपना नाम बताना भूल गए!!
शर्मा जी ने हमें फिर पान ठेले में देखा!
सादे लिबास में बड़े शान से देखा!
हाथ में सिगरेट और मुँह में पान दबाया था!
बड़े सज-सँवर के मैं पान ठेले आया था!
श्रीमान मुझे देखकर मुस्कुराने लगे!
और मन ही मन सोच-विचार करने लगे!!
आज मैं उनके साथ फूल्स डे मनाऊँगा!
सबके समक्ष उसे हँसी का पात्र बनाऊँगा!!
यहीं मंशा लेकर वो हमारे नाम पूछने आए थे!
बड़ी दिनो के बाद हमारे काम पूछने आए थे!!
कवि हूँ मैं पेशे से मैंने,
उसे अभियंता बता दिया!
नाम था मेरा ‘बिसेन यादव’,
मैंने उसे श्रीकान्ता बता दिया!!
हम भी है बड़े होशियार!
काव्य रचने वाले काव्यकार!!
बातो ही बातो में बड़ी आसानी से,
मैंने उसी ही क्षण अक्ल का घोड़ा दौड़ा दिया!
एक ही पल में उसी ही क्षण में श्रीमान को,
अक्ल का दुश्मन बना दिया!!
उसने मेरा नाम पूछा तो मैने,
उसे तेरा नाम बता दिया!
मेरे काम के बदले मैने,
उसे तेरा नाम बता दिया!!
बिल्ली ने आवाज की थी तो
उसे शेर का दहाड़ बता दिया!
तिड़ को ताड़ और
राई को पहाड़ बता दिया!
घर के समाने मिट्टी का छोटा ताजमहल बनाया था!
उसने पूछा तो उसे आगरा का ताजमहल बता दिया!!
हम उनसे कितने बुध्दिमान है,
हमने उन्हे दिखा दिया!
उस अक्लमंद विदूषक को हमने,
उस दिन बेअक्ल बना दिया!
आए थे वे हमें बुद्धू बनाने,
मैने उसे ही उल्लू बना दिया!
फस्ट अप्रैल को हमने उसे,
अप्रैल फूल बना दिया!!
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यह कविता हमें भेजी है बिसेन कुमार यादव जी ने गाँव-दोन्देकला, रायपुर, छत्तीसगढ़ से।
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