आप पढ़ रहे हैं ( Nanha Paudha Kavita ) नन्हा पौधा कविता :-
Nanha Paudha Kavita
नन्हा पौधा कविता
बोया था मिट्टी में बीज
यह सोचकर, पेड़ बनेगा ।
छाया देगा जीव जंतु को ,
फल भी सारा ढेर लगेगा ।।
रोज देखता कब निकलेगा ,
नन्ना मुन्ना अंग सलोना ।
हाथ पाव सा पत्ता कोमल
मेरा हीरा मोती सोना ।।
अंकुर फूटा, पड़ा दिखाई ,
होनहार चिकने पत्ते ।
लगने लगा मुझे अब ऐसा ,
मेरे होंगे सपने सच्चे ।।
समय को किसने पहचाना है,
क्या होगा किसने जाना है ?
जन्म- मरण का चक्र ही ऐसा ,
जो आया उसको जाना है ।।
पीले पड़ गए कोमल पत्ते,
पड़ी जब उस पर काली छाया ।
जीवन से तब हार गया वह,
जब अंत समय उसका आया ।।
सोचा कुछ, हो कुछ जाता है ,
कभी कभी देखा ऐसा है।
लगता कभी अनोखा जीवन
कभी लगता जीवन धोखा है।।
बन न पाया पेड़ बड़ा वह,
ना कर पाया काम बड़ा।
नहीं भरोसा इस जीवन का,
तब नाम समय का काल पड़ा ।।
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रचनाकार का परिचय
यह कविता हमें भेजी है रामबृक्ष कुमार जी ने अम्बेडकर नगर से।
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