आप पढ़ रहे हैं हिंदी कविता पराजय को न करना स्वीकार :-
पराजय को न करना स्वीकार
भले मार्ग में बाधाएं हो अनेक
पराजय को न करना स्वीकार।
सही दिशा का करना चयन
पूर्व की त्रुटियों में करके सुधार।।
आग की लपटें जो रोके तुझे
स्वागत करना उसका हंसकर।
बस एक कदम तू बढ़ता चल
तू अंतर्मन में साहस भरकर।।
मुश्किलें तुझसे कहने आयेगी
संग लायेगी घनघोर हताशा।
विकट अंध में जुगनू बनकर
छायेगी सफलता की आशा।।
निर्णय पर अपने अडिग रहना
लक्ष्य को न परिवर्तित करना ।
संघर्ष को जीवन में अपनाना
कुछ करने के पहले न मरना।।
सम्पूर्ण क्षमता को झोंक कर
हरा भरा कर देना रेगिस्तान।
सफलता को तुम हासिल करके
बढ़ाना मात तात का सम्मान।।
विपत्तियों के विकट क्षणों में
स्मरण करना तुम उनका नाम।
जिनसे प्राप्त किया है ज्ञान
नमन करना उन्हें आठो याम।।
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नमस्कार प्रिय मित्रों,
मेरा नाम सूरज कुरैचया है और मैं उत्तर प्रदेश के झांसी जिले के सिंहपुरा गांव का रहने वाला एक छोटा सा कवि हूँ। बचपन से ही मुझे कविताएं लिखने का शौक है तथा मैं अपनी सकारात्मक सोच के माध्यम से अपने देश और समाज और हिंदी के लिए कुछ करना चाहता हूँ। जिससे समाज में मेरी कविताओं के माध्यम से मेरे शब्दों के माध्यम से बदलाव आए।
क्योंकि मेरा मानना है आज तक दुनिया में जितने भी बदलाव आए हैं वह अच्छी सोच तथा विचारों के माध्यम से ही आए हैं अगर हमें कुछ बदलना है तो हमें अपने विचारों को अपने शब्दों को जरूर बदलना होगा तभी हम दुनिया में हो सब कुछ बदल सकते हैं जो बदलना चाहते हैं।
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