बारिश की रिमझिम बूंदों के दृश्य का वर्णन करती पावस ऋतु पर कविता ” श्यामल काली घटा ” :-
पावस ऋतु पर कविता
मैं देख दंग रह गया छवि छटा!
नीलनभ में श्यामल काली घटा!!
मानो वह वर्षासुन्दरी की आँखो की हो काजल !
उसे देख मन मेरा हो रहा है पागल!!
समीर- सागर पर वो तैर रहा है!
उसे देख उर मेरा हिलोर रहा है!
बागो में उद्यानो में पत्तिया कर रहा है चर-चर!
चहुँ दिशा चल रहा है समीर सर-सर!
आम्रवनो में पीक ,पपीहा ,बुलबुल!
अतिसुन्दर नाद करने लगी!
फिर व्योममण्डल में वारिद भी!
छियाछितौली और धमाचौकड़ी करने लगी!
उसे देख मग्न होकर कलापि भी!
नृत्य करने अपनी पर फैलाई!
फिर पतित पावन अतिमनभावन!
पावस नीर धरा पर गिर आई!
अम्बर में प्रभाकर पयोधर के साथ,!
लुका -छुपी का खेल खेल रहा है!
उमड़ते-घुमड़ते पावस पयोदो की!
क्रीडा-क्रिया को धरा देख रहा है!
काली-काली कजरारी घनघोर!
घटा नील अम्बर में छाने लगी!
मानो धवल देह में कृष्ण पट पहन!
बरखा रानी इतराने लगी!
दामिनी दमक-दमक घनराज!
चहुँ ओर गरज रहा है!
अम्बर में बादलो के मध्य!
सुर चाप चमक रहा है!
फिर इन्द्रचाप की रशिम बिखरने लगी!
आसमान भी अब सतरंगी दिखने लगी!
लहराती इतराती मस्तानी हवा की झोका आई!
लो फिर वर्षाऋतु की मौसम सुहानी आई!!
पपीहा- पावस की एक बुन्द के लिए!
ना जाने कितने मास बिताते है!
चकोर चन्द्र को एक टक देख!
जैसे पुरी रात बिताते है!!
जब कोयल पपीहा बुलबुल!
मधुर गीत गुनगुनाते है!
उनकी नाद सुनार जब!
मेघराज भी दौड़े आते है!
मध्यनिशा में दादुर टो-टो!
टे-टे टर्र-टर्र आवाज कर रहा है!
झिंगुर झन-झन सोर मचाके!
मानो मेघो को भू पे वह बुला रहा है!
लो भू पर गिरने के लिए आतुर है ये बादल सारे!
फिर धरा पर पड़ने लगी पावस की बौछारे!
सब ताल- तलईया और नदिया जलमय होने लगी!
सुखे नाले और नदिया अब लो फिर बहने लगी!
तब अविराम झर-झर-झर!
अम्बर से नीरद झरने लगी!
खेत खलियान ,छत-छप्पर!
सारी जगती तल भिगने लगी!
सुप्त अंकुरो को सुधा बन!
अमरत्व का पान कराने आई!
फिर पतित पावन अतिमनभावन!
पावस नीर धरा पर गिर आई!!
पढ़िए :- बारिश पर कविता “सुन वर्षा रानी”
यह कविता हमें भेजी है बिसेन कुमार यादव जी ने गाँव-दोन्देकला, रायपुर, छत्तीसगढ़ से।
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