आप पढ़ रहे हैं ( Phool Aur Kante Kavita ) फूल और कांटे कविता:-
फूल और कांटे कविता
जन्म लिया एक पौधे में,
एक थी शाखा,
पौधे ने फूल, कांटों को,
था एक सा पाला।
बरसीं थीं एक सीं,
घटाएँ भी उन पर,
हवाएँ भी एक जैसी,
बहतीं रहीं मुस्कुराकर।
हंसता रहा चांद भी,
चमकता रहा उन पर,
चांदनी छिटकी एक सी,
जागता रहा रात भर।
सूरज ने भी एक सी,
फैलाई सतरंगी किरणें,
सुन्दर,सुगंधित फूल बने,
वहीं बन गयें शूल,कांटे।
लगता गहरा है ,भेद बड़ा
फूल, शूल की विधा में,
विधाता का है ये विधान,
विधाता ही जानें।
इस कविता का वीडियो यहाँ देखें :-
पढ़िए :- फूल की अभिलाषा कविता | Phool Ki Abhilasha Kavita
रचनाकार का परिचय
यह कविता हमें भेजी है इली मिश्रा जी ने।
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