पिता और बेटी पर कविता ( Pita Aur Beti Par Kavita ) – बेटी का बाप हूँ। प्रिय पाठकों , आज की मौजूदा परिस्तिथियों और हालातों को देखकर कभी कभी बहुत डर लगता है जब आप एक बेटी के पिता होते हैं तो किस ता तरह एक पिता के मन में विचार आते हैं आइये पढ़ते हैं संजय जैन जी की कविता में –
पिता और बेटी पर कविता
सर उठा कर चल नहीं सकता।
बीच सभा के बोल नहीं सकता।
घर परिवार हो या गांव समाज।
हर नजर में घृणा का पात्र हूँ !
क्योंकि “बेटी” का बाप हूँ !!
जिंदगी खुलकर जी नहीं सकता।
चैन की नींद कभी सो नही सकता।
हर एक दिन रात रहती है चिंता।
जैसे दुनिया में कोई श्राप हूँ !
क्योकि “बेटी” का बाप हूँ !!
दुनिया के ताने कसीदे सहता।
फिर भी मौन व्रत धारण करता।
हरपल इज़्ज़त रहती है दाँव पर।
इसलिए करता ईश का जाप हूँ !
क्योकि “बेटी” का बाप हूँ !!
जीवन भर की पूँजी गंवाता।
फिर भी खुश नहीं कर पाता।
रह न जाए बेटी की खुशियो में कमी।
निश दिन करता ये आस हूँ।
क्योकि “बेटी” का बाप हूँ !!
अपनी कन्या का दान करता हूँ।
फिर भी हाथजोड़ खड़ा रहता हूँ।
वरपक्ष की इच्छा पूरी करने के लिए।
जीवन भर बना रहता गूंगा आप हूँ।
क्योकि “बेटी” का बाप हूँ !!
देख जमाने की हालत घबराता।
बेटी को संग ले जाते कतराता।
बढ़ता कहर जुर्म का दुनिया में।
दोषी पाता खुद को आप हूँ।
क्योकि “बेटी” का बाप हूँ !!
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परिचय :-
मै संजय जैन बीना जिला सागर (मध्यप्रदेश) का रहने वाला हूँ। वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हूँ। मैं करीब 26-27 वर्षो से बम्बई में एक पब्लिक लिमिटेड कंपनी में कमर्शियल मैनेजर के पद पर कार्यरत हूँ। मास्टर ऑफ़ कॉमर्स के साथ ही एक्सपोर्ट मैनेजमेंट की शैक्षणिक योग्यता हैं।
मुझे बचपन से ही लिखना पढ़ने का बहुत शौक था। इसी कारण से लेखन में सक्रिय हूँ। मेरी रचनाएं बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं। मैं अपनी लेखनी का कमाल कई मंचों पर भी दिखाता रहता हूँ । इसी प्रतिभा के करण मुझे कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा मुझे सम्मानित किया जा चुका है।
मुम्बई के नवभारत टाईम्स में ब्लॉग भी लिखता हूँ और भी क्षेत्रीय पत्र पत्रिकाओं में भी मेरे गीत, कविताएं और लेख प्रकाशित होते रहते हैं । मुझे लेख,कविताएं और गीत आदि लिखने का बहुत शौक है, जिसके कारण में कई सामाजिक गतिविधियों और समाज सेवी संस्थाओं में भी हमेशा सक्रिय रहता हूँ।
हिंदी भाषा को राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिले इसके लिए निरंतर प्रयास करता रहता हूँ।
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