आप पढ़ रहे हैं राधा कृष्ण प्रेम कविता ( Radha Krishna Prem Kavita In Hindi ) “बिन डोर बंध गई हूँ” :-

राधा कृष्ण प्रेम कविता

राधा कृष्ण प्रेम कविता

विन डोर बंध गयी हूँ मेरे सावरे।
मुझे ले चल कहीँ भी ओ साँवरे।
ये बंधन है तेरे प्रेम का कभी टूटे न साँवरे।
तेरी साँवरी सूरत मोहिनी मूरत पे हो गयी बावरे।

कजरारे नैनो में डूब जाऊँ हो साँवरे।
तोड़ा न जाए कभी बंधन ये प्रेम का ओ साँवरे।
विन बाँधे बंध गयी हूँ ओ रावरे
तेरे चरणों की धूल माथे पे मेरे सोहे,
तेरी वंशी तान सुन कर जग सारा मोहे।

कान्हा कैसा ये तेरा नेह का बंधन
लोक लाज हारी तन मन की सुध विसारी।
एक बार आजा ओ बाँके बिहारी।
ना जाओ मथुरा तोड़ कर बंधन
यह प्रेम की मदिरा फिर कहाँ मिलेगी ।
वे जान हो गयी है तुम विन ओ साँवरे।

सारी गोकुल कान्हा ही कान्हा पुकारे ।
कालिन्दी के किनारे ओ साँवरे
ओ साँवरे ओ साँवरे।

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रचनाकार का परिचय –

मैं सौदामिनी खरे पति स्व0अशोक खरे

जन्म तिथि :-  25/08/1963

मै एक शिक्षिका हूँ रायसेन जिले की निवासी हूँ ।हिन्दी साहित्य की सेवा करना अपना सौभाग्य समझती हूँ, सभी रस पर लेखन करना मेरी विधा गीत,गजल,दोहे छंद कविता नज्म आदि है।

अभी तक साझा संकलन, कश्तियो का सफर ,काव्य रंगोली में, तथा मासिक पत्रिका ग्यान सागर मे प्रकाशित हुई है हिन्दी भाषा डाट काम पर भी रचनाऐ प्रकाशित हुई है,नव सृजन कल्याण समिति की फाउन्डर मेम्बर मे मीडिया प्रभारी हूँ ।


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