भारत माता के प्रति अपने प्रेम और भक्ति को दर्शाती हुयी राष्ट्र भक्ति कविता ” भारती के मान का गुमान ” :-

राष्ट्र भक्ति कविता

राष्ट्र भक्ति कविता

भारती के मान का गुमान ना करूं तो कहो,
सुन्दरी के रंग रूप के ही गीत गाऊँ क्या ।।
राष्ट्र धर्म कर्म का जो मर्म ना कहूं तो कहो,
प्रेयसी के दुपट्टों की छांव में छुप जाऊँ क्या ।।

सूरमाओं के लिए मैं काव्य नहीं लिख सकूं तो,
प्रेम के विहंग के प्रसंग को सुनाऊं क्या ।।
जो युद्ध भूमि साजती श्रृंगार शूरवीर का,
तो वीरता के चित्र का चरित्र ना दिखाऊं क्या ।।

भारती के प्राण से प्राकट्य मेरा प्रेम है,
तो कहो ऐसे प्रेम को मैं धार में बहा दूं क्या ।।
पास है तो दास बन के त्रास क्यूं मिटाऊं ना मैं,
बाकुरों के त्याग में ही दाग कुछ लगा दूं क्या ।।

गर प्रेम के वर्चस्व में सर्वस्व का परित्याग है,
तो भारती कि आरती कि थाल ही बन जाऊंगा ।।
जो मेरे अस्तित्व के प्रभुत्व से जगोगे राम ,
तो अश्वमेघ का मैं अश्व-नाल ही बन जाऊंगा ।।

आज मेरी चाह में उछाह सा प्रवाह दो,
तो देश धर्म की ध्वजा को सर्वश्रेष्ठ मान दूं ।।
दिव्यता के गान का महान गीत बन सकूं तो,
राष्ट्र चेतना का पूरे विश्व को प्रमाण दूं ।।

पढ़िए :- हिन्दी वीर रस की कविता “भारत को भगवान लिखूंगा”


रचनाकार का परिचय

जितेंद्र कुमार यादव

नाम – जितेंद्र कुमार यादव

धाम – अतरौरा केराकत जौनपुर उत्तरप्रदेश

स्थाई धाम – जोगेश्वरी पश्चिम मुंबई

शिक्षा – स्नातक

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