यही जीत है भारत की अपनी
न जाम की समस्या , न फैल रहा प्रदुषण ।
न हो रहा हल्ला , न दिख रहा धरना ।।
यही जीत है भारत की अपनी।।
न कपड़े की चिन्ता , न गहने का शौक ।
न मॉल का चक्कर , न दुकान का दौर ।।
यही जीत है भारत की अपनी।।
न ऑफिस का टेंशन , न बॉस की डांट ।
न फिजुल की चिंता , न पत्नी का फोन ।।
यही जीत है भारत की अपनी।।
न स्कूल की चिन्ता , न फीस का टेंशन ।
बच्चे है घर पर , कर रहे साथ मौज ।।
यही जीत है भारत की अपनी।।
देखें रामायण , सब देख रहे महाभारत ।
मिल रही शिक्षा , बढ़ रही संस्कृति ।।
यही जीत है भारत की अपनी।।
मिट रही दुश्मनी , बढ़ रहा मेल ।
भूले – भूले रिस्तों को , जोड़ रहे लोग ।
यही जीत है भारत की अपनी।।
बट रही खूब रोटी , कर रहे दान लोग ।
कलयुग में सतयुग , दिख रहा चारों ओर ।।
यही जीत है भारत की अपनी ।।
है पैसों की तंगी , नहीं फिर भी चिन्ता ।
मिल रहा सब कुछ , चाहिए नहीं कुछ और ।।
यही जीत है भारत की अपनी।।
सिर्फ जीने का चाहत , नहीं कुछ और ।
इसीलिए घर में बैठे है , धैर्य से लोग ।।
यही जीत है भारत की अपनी।।
न आपसी झगड़ा , न बदले की भावना ।
सिखा दिया यह , कोरोना का खौफ ।।
यही जीत है भारत की अपनी।।
दवा मांगा अमेरिका , बुटी मांगा ब्राजील ।
निवेदन मोदी से करके , चला विश्व गुरु की ओर ।।
यही जीत है भारत की अपनी।।
हार जाएगा कोरोना , जीत जाएंगे हम ।
पूरी दुनिया देखेगी , जीत जाएगा भारत ।।
यही जीत है भारत की अपनी।।
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रचनाकार का परिचय :-
नाम :- अभिषेक कुमार दूबे
पिता – श्री उमेश दूबे
माता – श्रीमती मीना देवी
कर्मकाण्डविद्
वेद विभूषण :- आर्षविद्या शिक्षण प्रशिक्षण सेवा संस्थान , मोतिहारी
वेदाचार्य (एम. ए.) “चत्वारि लब्ध स्वर्ण पदक प्राप्त”
शिक्षा शास्त्री :- सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी
एम. ए (संस्कृत ) :- राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय , फैजाबाद
प्रकाशन :- 10 शोधपत्र , 100+ लेख पत्रिका एवं दैनिक समाचार पत्र में प्रकाशित हो चुके हैं।
स्थाई निवास :- परसौनी खेम, चकिया, पूर्वी चम्पारण, बिहार
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Ati sundar