माँ अपने जीवन में बहुत कष्ट सहती है जिस से कि उसका परिवार सुखी रह सके कैसे? पढ़िए हरीश चामोली जी द्वारा रचित ( Maa Ka Dard Kavita ) माँ का दर्द कविता “जलती आग की लौ है माँ”

माँ का दर्द कविता

माँ का दर्द कविता

वो मिट्टी के कच्चे चूल्हे पर,जलती आग की लौ है माँ।
कच्ची पक्की मोटी पतली,रोटीयाँ पकाती दिखती माँ।

कभी चूल्हे पे फूंक मारती, कभी उबलते दूध पर माँ।
जला देती जब हाथ कभी तो,दवा लगाती दिखती माँ।

चाय में घुलती शक्कर जैसी, मिलनसार होती है माँ।
मेहमानों की घर मे करती,मेहमान नवाजी दिखती माँ।

कभी पिता की डांट सुने तो, दादी की फटकार है माँ।
सब कुछ कर देती है फिर भी,ताने सुनती दिखती माँ।

नहीं समझ उसको शायद,क्या होती दुनियादारी है माँ?
अपने ही घर के कोनों में, अश्रुधार छुपाती दिखती माँ।

नौ माह बोझ लिए कोख में, वेदनाओं का पहाड़ है माँ।
अपनी ही औलादों की भी, गुर्राहट सहती दिखती माँ।

चालीस वर्ष के होते ही,साठ वर्षों का अनुभव होती माँ।
माथे की झुर्रियों को अपनी,व्यथाएं सुनाती दिखती माँ।

माँ से उसका धर्म न पूछो, इक अलग धर्म होती है माँ।
ममता की मूरत बनकर वह,स्वधर्म बताती दिखती माँ।

खाता है कसम आज हरीश, तुझे न गम कोई देगा माँ।
मेरी खुशियों की खातिर दोनों,हाथ जोड़ती दिखती माँ।

घर की पूजा-पाठ हो या फिर,मंदिरों की आरती में माँ।
सलामती की खातिर मेरी,नतमस्तक होती दिखती माँ।।

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हरीश चमोली

मेरा नाम हरीश चमोली है और मैं उत्तराखंड के टेहरी गढ़वाल जिले का रहें वाला एक छोटा सा कवि ह्रदयी व्यक्ति हूँ। बचपन से ही मुझे लिखने का शौक है और मैं अपनी सकारात्मक सोच से देश, समाज और हिंदी के लिए कुछ करना चाहता हूँ। जीवन के किसी पड़ाव पर कभी किसी मंच पर बोलने का मौका मिले तो ये मेरे लिए सौभाग्य की बात होगी।

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