सरहद पर देश की सेवा में तैनात एक सैनिक को अक्सर ही अपने परिवार और दोस्तों की यादें आती हैं। ऐसे में उस माँ की याद का एहसास ही कुछ अलग होता है जिसकी गोद में उसने बचपन बिताया होता है। कैसा होता है उसका हाल जब माँ की याद आती है तो आइये पढ़ते हैं इस माँ की याद पर कविता ( Maa Ki Yaad Par Kavita ) “माँ याद तुम्हारी आती है”

माँ की याद पर कविता

सपनो में आ करके तू
मुझको बहुत सताती है।
याद तुम्हारी आती है माँ
याद तुम्हारी आती है।।

दिल को समझा लेता हूँ
आँखो में आसू भरकर
मैं तो हूँ सरहद पर माँ
जाने कब लौटूंगा घर,
जब भी बात फ़ोन पर हो
आंसू खूब बहाती है।
याद तुम्हारी आती है
माँ याद तुम्हारी आती है।।

यदि गुस्सा हो जाये माँ तो
जी भर के वो रो देती है
कितने भी हो जुल्म पुत्र के
हंस कर सारे धो देती है,
बेटों की खुशियों खातिर माँ
नित ही दीप जलाती है।
याद तुम्हारी आती है
माँ याद तुम्हारी आती है।।

जाने कौन भला दुनिया में
जख्म मैं कितने ढोता हूँ
एक तस्वीर तुम्हारी है माँ
मैं देख जिसे नित सोता हूँ,
माँ के बिन तो हूँ ऐसे मैं
जैसे तेल बिना बाती है।
याद तुम्हारी आती है
माँ याद तुम्हारी आती है।।

सपनो में आ करके तू
मुझको बहुत सताती है।
याद तुम्हारी आती है
माँ याद तुम्हारी आती है।।

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रचनाकार का परिचय

कवि अनमोल रतनयह कविता हमें भेजी है कवि अनमोल रतन जी ने रायबरेली, उत्तर प्रदेश से।

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