माँ के इस दुनिया से चले जाने के बाद अपने हृदय की भावना को शब्दों का रूप देती हुयी ” स्वर्गीय माँ की याद पर कविता ”
स्वर्गीय माँ की याद पर कविता
बदला नेचर देख देख कर
मैं टूटता बहुत हूँ माँ,
कहा था कस के थामे रहना
मैं लड़खड़ाता बहुत हूँ माँ।
हर कदम पर मिली रूसवाई
जिनसे उम्मीद थी ज्यादा,
हाल खुद ही पूछ लेना मेरा
सबसे छुपाता बहुत हूँ माँ।
जिस दौर से गुजर रहा हूँ मैं
तीर शब्दों के चीरते है मन को,
ग़मों का समंदर छिपाकर
मैं मुस्कुराता बहुत हूँ माँ।
जीवन तो एक रंगमंच है भला
हम तो मात्र किरदार है,
तक धिना धिन धुन पर यहाँ
कारोबार चलाता बहुत हूँ माँ।
निभा रही हो परलोक में भी
जिम्मेदारी, स्पर्श खुरदुरा देख,
अश्क नयनों से ना बहे बस
बहाता ओस सी बूँद बहुत हूँ माँ।
पवन सा कहीं ठहरता नहीं
आह जीवन में भरता नहीं,
मिट्टी सा आधार हूँ अनमोल
सौरभ बन बिखरता बहुत हूँ माँ।
ना भूला सभ्यता , संस्कार मैं
ना इंसानियत रुखसत की,
पिता की ठंडी़ छाँव ना मिली
सीखा आज उनसे बहुत हूँ माँ।
आप गये दुनिया गयी मेरी
वेदना हृदय की सह नहीं पाया,
याद में अपनों की अकसर
आज भी रोता बहुत हूँ माँ।
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